प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना स्वयं प्रकृति ! जिस क्षण मनुष्य जन्म लेता है उसी क्षण से उसके साथ सुख दुःख भी जुड़ जाते है और कभी कभी छोटा या बड़ा रोग भी ! आदिकाल में जब मनुष्य चिकित्सा
की कोई प्रणाली नहीं जानता 
था और बीमार हो जाता था तब भी अपने आस पास उपलब्ध प्राकृतिक साधन जल मिटटी अग्नि और उपवास आदि रख कर  रोगमुक्त हो जाता था यही से प्राकृतिक चिकित्सा
का उद्गम  हुआ जैसा की सर्वविदित है ही की मानव
शरीर की रचना अग्नि जल पृथ्वी आकाश तथा  वायु
से मिलकर हुई है और अंत में  इन्ही पंचत्तव  में मिल जाते है , अतः इन्ही पंचतत्व में आये असन्तुलन
से शरीर में व्याधि आ  जाती  है जो जल मिटटी अग्नि  उपवास द्वारा संतुलित की जाती है !
यूँ तो आदिकाल से प्राकृतिक चिकित्सा किसी न
किसी रूप में चलन में रही  परन्तु औपचारिक रूप
से इससे भारत में लाने का श्रेय महात्मा गांधी जी को जाता है ! गांधी जी , एडोल्फ जस्ट
की पुस्तक Return to nature से अत्यधिक प्रभावित थे , उन्होंने पहले स्वयं  अपने परिवारजन पर इसका प्रयोग किया और इसके चमत्कारिक
प्रभाव देख अपने आश्रमवासियो पर सफलतापूर्वक उपचार किया और  संतुष्ट 
होने पर यह निश्चय किया की ऐसे सस्ती सर्वसुलभ चिकित्सा का फायदा हमारे देश
की गरीब जनता का फायदा हमारे देश
की गरीब जनता  को भी होना चाहिए अतः भारत के
गांव गांव ,जन जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया ! देश का पहला प्राकृतिक  चिकित्सालय
पूना के उरुलि कांचन में गांधीजी ने स्थापित किया इस प्रकार महात्मा गांधी देश के पहले
प्राकृतिक चिकित्सक बने!
इस चिकित्सा में किसी भीं रोग का निदान उपवास
, उचित खान पान, नियमित दिनचर्या , व्यायाम ,योग, मालिश, ठंडे गरम जल, ठंडी गरम मिटटी
आदि द्वारा किया जाता है ! इस चिकित्सा द्वारा केवल शरीर ही नहीं अपितु मन व् वचन भी
निरोगी बनाए जाते है ! दवा के रूप में नहीं जरुरत पड़ने पर देसी सामान जैसे हींग , हल्दी
, आंवला आदि और सर्व सुलभ देसी जड़ी बूटिया प्रयोग में लाइ है ! इसके अतिरिक्त विभिन्न
प्रकार की मालिश द्वारा भी उपचार दिया जाता है !
चूँकि इस चिकित्सा में सभी प्राकृतिक वस्तुओं
का प्रयोग होता है अतः किसी प्रकार का कोई 
दुष्प्रभाव नहीं पढता!
इस
प्रकार देश में
ही नहीं अपितु  विदेशो
में भी यह
चिकित्सा लोकप्रिय होती जा
रही है
 



 
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